1983 ई0 में राँची को विभाजित कर तीन जिले यथा राँची, गुमला और लोहरदगा के निर्माण के फलस्वरूप लोहरदगा जिला के रूप में अस्तित्व में आया | जिले का नामकरण लोहरदगा शहर के नाम पर किया गया जो जिले का प्रशासनिक मुख्यालय बना | 1972 ई0 में लोहरदगा को अनुमंडल एवं 1983 ई0 में जिले का रूप में स्थान प्राप्त हुआ | जैन पुराणों के अनुसार भगवान महावीर ने लोहरदगा की यात्रा की थी | जहाँ पर भगवान महावीर रुके थे उस स्थान को “लोर-ए-यादगा” के नाम से जाना जाता है जिसका मुंडारी में आंसुवों की नदी (River of Tears) होता है | सम्राट अकबर पर लिखी पुस्तक “आयने अकबरी” में भी “किस्मत-ए-लोहरदगा का उल्लेख है |लोहरदगा हिंदी के दो शब्दों ‘लोहार’ जिसका शाब्दिक अर्थ लोहे का व्यापारी और ‘दगा’ जिसका अर्थ केंद्र अर्थात लोह खनिज का केंद्र होता है |
यह जिला झारखण्ड राज्य के दक्षिण पश्चिम भग में अवस्थित है जिसका अक्षांशिय विस्तार 23°30’ उतर से 23°40’ उतर तथा देशांतरीय विस्तार 84°40 से 84°50 पूर्वी तक है | छोटानागपुर पठार के जनजातीय बहुल क्षेत्र में 1491 वर्ग किमी० क्षेत्रफल से आच्छादित है | जिला छोटे छोटे पहाड़ों एवं जंगल से घिरा हुआ है | इसका सामान्य ढलान पश्चिम से पूर्व की ओर है | कोयल, शंख, नंदिनी,चौपाट, फुलझर इत्यादि जिले की प्रमुख नदिया है | ये सभी नदियाँ वर्षा आधारित है जो गर्मियों में सुख जाती है | जिले के पहाड़ी पथ पर कुछ झरने भी दिखाई पड़ते है | भूगर्भिक दृष्टि से यह क्षेत्र आर्किचन ग्रेनाईट (Archean Granite) एवं गनीस से निर्मित है | जिले के उपरी क्षेत्र में ग्रेनाईट एवं गनीस के बिच मुख्य रूप लेटेराईट मिट्टी पाई जाती है जो प्लिस्टोसेन युग में निर्मित हुई है |आधुनिक काल में नदी घाटी में अलूवियम पाया जाता है | बोक्साईट जिले का प्रमुख खनिज है | अन्य खनिज में फेल्सपार, फायरक्ले तथा चायनाक्ले है जो कम आर्थिक महत्त्व के है | जिले का एक वृहत भाग ग्रेनाईट एलुवियम , लाल मिट्टी , बलुवा मिट्टी , लाल और बजरी मिट्टी से आच्छादित है | कुछ भागो में लेटेराईट, लाल एवं पिली मिट्टी भी पाई जाती है |इस में सालो भर स्वास्थ्य वर्धक एवं आरामदायक मौसम पाया जाता है | वार्षिक औसत तापमान 23°C तथा वार्षिक औसत वर्षा 1000-1200 मिली० होती है | यहाँ वर्षा पश्चिम से पूर्व की ओर होती है |